भीजत कुंजनि मै दोउ आवत।
ज्यौ ज्यौ बूँद परति चूनरि पर, त्यौ त्यौ हरि उर लावत।।
तैसे मोर कोकिला बोलत, पवन बीजु घन धावत।
लै मुरली कर मंद घोर सुर, राग मलार बजावत।।
अधिक झकोर जबै मेघनि की, द्रुम तिरछनि बिरमावत।
वै हँसि ओट करत पीतांबर, ये चुनरी उढ़ावत।।
भीजे राग रागिनी दोऊ, भीजै जल छवि पावत।
'सूरदास' प्रभु रीझि परस्पर, प्रीति अधिक उपजावत।।1992।।