दीजै कान्ह काँधे कौ कंबर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


दीजै कान्ह काँधे कौ कंबर।
नान्ही नान्ही बूदनि बरषन लाग्यौ, भीजत कुसुँ भी अंबर।।
बार बार अकुलाइ राधिका, देखि, मेघ आडंबर।
हँसि-हँसि रीझि बैठि रहे दोऊ, ओढ़ि सुभग पीतंबर।।
सिव सनकादिक नारद सारद, अंत न पावै तुबर।
'सूर' स्याम गति लखि न परति कछु, खात ग्वाल सँग सबर।।1991।।

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