दीजै कान्ह काँधे कौ कंबर।
नान्ही नान्ही बूदनि बरषन लाग्यौ, भीजत कुसुँ भी अंबर।।
बार बार अकुलाइ राधिका, देखि, मेघ आडंबर।
हँसि-हँसि रीझि बैठि रहे दोऊ, ओढ़ि सुभग पीतंबर।।
सिव सनकादिक नारद सारद, अंत न पावै तुबर।
'सूर' स्याम गति लखि न परति कछु, खात ग्वाल सँग सबर।।1991।।