भई मन माधव की अवसेर।
मौन धरे मुख चितवति ठाढी, ज्वाब न आवै फेर।।
तब अकुलाइ चली अठि बन कौं, बोलैं सुनति न टेर।
बिरह बिबस चहुँधा भरमति है, स्याम कहा कियौ झेर।।
आवहु बेगि मिलौ नँद-नंदन, दान न करौ निबेर।
सूर स्याम अंकम भरि लीन्ही, दूरि कियौ दुख-ढेर।।1677।।