बृदावन परम सुहावनौ राधा खेलै गफा वारे कान्हैया।
मोहन बँसिया बजावै नदि जमुना कै तीर वारे कान्हैया।।
स्रवन सुनत सब धावही झोरी भरे अबीर वारे कान्हैया।
उर मोतिनि की भाल री पहिरे रातुल चीर वारे कान्हैया।।
ब्रज की बधु सब सुदरी स्रवननि झलकै बीर वारै कान्हैया।
चोवा चंदन अरगजा छिरकै सकल सरीर वारे कान्हैया।
इक तो राधा सुंदरी दूजै परी अबीर वारे कान्हैया।
साँकरि खोरिया बिरज की भई चोवा की हील वारे कान्हैया।।
वृँदावन के कुंज मैं भइ दोऊ दिसि भीर वारे कान्हैया।
इहि बिधि होरी खेलही गावै निसि दिन ‘सूर’ वारे कान्हैया।। 130 ।।