बारक जाइयौ मिलि माधौ।
को जानै तन छूटि जाइगौ, सूल रहै जिय साधौ।।
पहुनैंहु नंद बबा के आवहु, देखि लेउँ पल आधौ ।
मिलेंही मैं बिपरीत करी बिधि, होत दरस कौ बाधौ ।।
सो सुख सिव-सनकादि न पावत, जो सुख गोपिन लाधौ ।
'सूरदास' राधा विलगति है, हरि को रुप अगाधो ॥3232॥