प्रात समय मेरै मोहन आए।
कुंचित केस कमल मुख ऊपर, हृदै रहे मनु अलि कुल छाए।।
डगमग चलि पग परत न सूधै, इहिं विधि तौ मैरै मन भाए।
कहुँ कहुँ पीक, कहूँ काजर, कहुँ नखरेखा अति बनक सुहाए।।
मो तन, बीच, निरखि मुसुकाने, छोरिं पीत पट अंक दुराए।
'सूरदास' माधौ बलि बलि अब, स्याम जानि जैसै हौ पाए।। 89 ।।