कित जदुनंदन रहत पराए -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग काफी




कित जदुनंदन रहत पराए।
किहि राकसिनि जावक उर लाए जामिनि जगत जगै न जगाए।।
भूलि गए वै राति की बतिया, वै छतियाँ नखरेख बनाए।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस की ये लोचन कबहूँ न अधाए।। 88 ।।

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