प्रगट करौं अब तुमहिं बताऊँ।
चिकुर चमर, घूंघट हय-बर, बर भ्रुव-सारँग दिखराऊँ।।
बान-कटाच्छ, नैन खंजन, मृग, नासा सुक उपमाऊँ।
तरिवन चक्र, अधर बिद्रुम-छबि, दसन बज्र-कन ठाऊँ।।
ग्रीव कपोत, कोकिला बानी, कुच घट-कनक सुभाऊँ।
जोबन-मद रस-अमृत भरे हैं, रूप रंग झलकाऊँ।।
अंग सुगंध बास पाटंबर, गनि-गनि तुमहिं सुनाऊँ।
कटि केहरि गयंद-गति सोभा, हंस सहित इकनाऊँ।।
फेरि कियै कैसैं निबहति हौ, घरहिं गए कहँ पाऊँ।
सुनहु सूर यह बनिज तुम्हारैं, फिरि-फिरि तुमहि मनाऊँ।।1553।।