इतने सब तुम्हारैं पास -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


इतने सब तुम्हारैं पास।
निरखि देखहु अंग-अँग अब, चतुरई कैं गाँस।।
तुरतहीं निरवारि डारहु, करति कतहिं अबेर।
तुम कहौ कछु हमहुँ बोलैं, घरहिं जाहु सबेर।।
कनक-तनु परतच्छ देखहु, सजे नव-सत अंग।
सूर तुम सब रूप जोबन, धरयौ एकहि संग।।1552।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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