प्यारी साँच कहति की हाँसी।
काहे कौ इतनौ रिस पावति, कत तुम होहु उदासी।।
पुनि पुनि कहति कहा तबही तै, कहा ठगो सो ठाढ़ी।
इकटक चितै रही हिरदय तन, मनौ चित्र लिखि काढ़ी।।
समुझी नहीं कहा मन आई, मदन त्रसै तुव आगे।
'सूर' स्याम भए काम आतुरे, भुजा गहन पिय लागे।।2415।।