प्यारी अंस परायौ दै री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


प्यारी अंस परायौ दै री।
मेरी सिख सुनि रसिक राधिका, मन मैं न्याउ चितै री।।
आपु आपनी तिथि वा इंदुहिं, अँचवत अमर सबै री।
हर, सुरेस, सुर, सेस, समुझि जिय, क्यौ प्रभु पान करै री।।
वह जूठौ ससि जानि, बदनबिधु, रच्यौ बिरचि यहै री।
सौप्यौ सुपत बिचारि स्याम हित, सु तू रही लटि लै री।।
जाकौ जहाँ प्रतीति 'सूर' सो, सर्बस तहाँ सँचै री।
सुद्ध सुधानिधि अर्पि अबहिं उठि, बिधि पुनि पुनि न पचै री।।2821।।

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