पिय की बात सुनहि किन प्यारी।
जो कछु भयौ सो कहिहौ तुम सन, होहु सखिन तै न्यारी।।
तब जु वियोग सोक अति उपज्यौ, काम देह तिन जारी।
भेषज अधर सुधा है तुम पै, चलि दै बिथा निवारी।।
कठिन परे जु कुसल रिपु पूछै, मन की कहा बिचारी।
'सूरदास' प्रभु हिरदय तेरे, मानहु सार पुछारी।।2583।।