पाँड़े नहिं भोग लगावन पावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली



पाँडे़ नहिं भोग लगावन पावै।
करि-करि पाक जबै अर्पत है, तबहीं तब छवै आवै।
इच्‍छा करि मैं बाम्‍हन न्‍यौत्‍यौ, ताकौं स्‍याम खिझावै।
वह अपने ठाकुरहिं जिवाबै, तू ऐसै उठि घावै।
जननी दोष देति कत मोकौं, बहु बिंधान करि ध्‍यावै।
नैन मूंदि, कर जोरि, नाम लै बारहिं बार बुलावै।
कहि, अंतर क्‍यौं होइ भक्‍त सौं, जो मेरैं मन भावै?
सूरदास बलि-बलि बिलास पर, जन्‍म-जन्‍म जस गावै।।249।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः