सफल जन्म, प्रभु आजु भयौ।
धनि गोकुल, धनि नंद जसोदा, जाकैं हरि अवतार लयौ।
प्रगट भयौ अब पुन्य–सुकृत-फल, दीन-बंधु मोहिं दरस दयौ।
बारंबार नंद कैं आंगन लोटत द्विज आनंद मयौ।
मैं अपराध कियौ बिनु जानैं, को जानै किहिं भेष जयौ।
सूरदास प्रभु भक्त–हेत-बस जसुमति-गृह आनंद लयौ।।250।।