पतितपावन जानि सरन आयो
उदघि-संसार सुभ नाम-नौका तरन, अटल अस्थान निजु निगम गयौ।
ब्याघ अरु गीध, गनिका, अजामील द्विज चरन गौतम तिया परसि पायौ।
अंत औसर अ ध नाम उच्चार करि सुम्रत गज ग्राह तै तुन छुड़ायौ।
अबल प्रहलाद, वलि दैत्य सुखही भजत, दास ध्रुव चरन सीस नायौ।
पांडु-सुत विपति-मोचन महादास लखि, द्रौपदी-चीर न ना बढ़ायौ।
रुर प्रभु-चरन चित चेति चेतन करत, व्रह्म-सिव-सेस-सुद-सनक ध्यौ।।।119।।
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