नंद-घरनि यह कहति पुकारे।
कोउ बरषत, कोउ अगिनि जरावत, दई परयौ है खोज हमारे।
तब गिरिवर कर धरयौ कन्हैया, अब न बाँचि हैं मारत जारे।
जेंवन करन चली जब भीतर, छींक परी ती आजु सबारे।
ताकौ फल तुरतहिं इक पायौ, सो उबरयौ भयौ धर्म सहारे।
अब सबकौ संहार होत है, छींक किए ये काज बिचारे।
कैसे हुँ ये बालक दोउ उबरैं, पुनि-पुनि सोचति परी खभारे।
सूर स्याम यह कहत जननि सौं, रहि रो मा धीरज उर धारे।।595।।