महरात झहरात दवानल आयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड़



महरात झहरात दवा (नल) आयौ।
घेरि चहुँ ओर, करि सोर अंदोर बन,
धरनि आकास चहुँ पास छायौ।
बरत बन-बाँस, थरहरत कुस काँस,
जरि, उड़त है माँस, अति प्रबल धायौ।
झपटि झपटत लपट, फूल-फल चट-चटकि,
फटत, लटलटकि दु्रभ-द्रुभ नवायौ।
अति अगिनि-झार, भंभार धुंधार करि,
उचटि अंगार झंझार छायौ।
बरत बन पात महरात झहरात अररात,
तरु महा, धरनी गिरायौ।
भए गेहाल सब ग्वाल ब्रज-बाल,
तब सरन गोपाल कहि कै पुकारयौ।
तृना केसी सकट बकी बक अघासुर,
बाम कर राखि गिरि ज्यौं उबारयौ।
नैंकु धीरज करौ, जियहिं कोउ जिनि डरौ,
कहा इहिं सरौ, लोचन मुँदाए।
मुठी भरि लियौ, सब नाइ मुखहीं दियौ,
सूर प्रभु पियौ ब्रज-जन बचाए।।596।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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