नंदलाल सौं मेरौ मन मान्यौ, कहा करैगौ कोउ।
मैं तो चरन-कमल लपटानी, जो भावै सो होउ।।
बाप रिसाइ, माइ घर मारै, हँसैं बिराने लोग।
अब तौ स्यामहिं सौं रति बाढ़ी, बिधना रच्यौ सँजोग।।
जाति महति पति जाइ न मेरी, अरु परलोक नसाइ।
गिरिधर बर मैं नैकु न छाँड़ौं, मिली निसान बजाइ।।
बहुरि कबहिं यह तन धरि पैहों, कहँ पुनि श्री बनवारी।
सूरदास-स्वामी कैं ऊपर यह तन डारौं वारी।।1663।।