सखी री स्याम सौं मन मान्यौ।
नीकैं करि चित कमल-नैन सौं, घालि एकठाँ सान्यौ।।
लोक-लाज उपहास न मान्यौ, न्यौति आपनेहिं आन्यौ।
या गोबिंदचंद कैं कारन, बैर सबनि सौं ठान्यौ।।
अब क्यौं जात निबेरि सखी री, मिल्यौ एक पय पान्यौ।
सूरदास-प्रभु मेरे जीवन, पहिलैं ही पहिचान्यौ।।1662।।