धन्‍य-धन्‍य ऋषि-साप हमारे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ



धन्‍य-धन्‍य ऋषि-साप हमारे।
आदि अनादि निगम नहिं जानत, ते हरि प्रगट देह ब्रज धारे।
धन्‍य नंद, धनि मातु जसोदा, धनि आंगन खेलत भए बारे।
धन्‍य स्‍याम, धनि दाम बँधाए, धनि ऊखल, धनि माखन-प्‍यारे।
दीन-बंधु करुना-निधि हौ प्रभु, राखि लेहु हम सरन तिहारे।
सूर स्‍याम कैं चरन सीस धरि, अस्‍तुति करि निज धाम सिधारे।।385।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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