देखि सखी उत है वह गाउँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


देखि सखी उत है वह गाउँ।
जहाँ बसत नँदलाल हमारे, मोहन मथुरा नाउँ।।
कालिंदी कै कुल रहत है, परम मनोहर ठाउँ।
जौ तन पख होइ सुनि सजनी, अबहिं उहाँ उड़ि जाउँ।।
होनी होइ होइ सो अबही, इहि ब्रज अन्न न खाउँ।
‘सूर’ नंदनंदन सौं हित करि, लोगनि कहा डराउँ।। 3253।।

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