मथुरा के द्रुम देखियत न्यारे ।
ह्याँ है स्याम हमारे प्रीतम, चितवत लोचन हारे ।।
कितिक बीच, संदेसहु दुरलभ, सुनियत टेरि पुकारे ।
तुव गुन सुमिरि सुमिरि हम मोहन, मदन बान उर मारे ।।
तुम बिनु स्याम सबै सुख भूल्यौ, गृह बन भए हमारे ।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, रैनि गनत गइ तारे ।। 3252 ।।