तोहिं स्याम हम कहा दिखावै।
तुमनै न्यारे रहत कहुँ न वै, नैकु नही बिसरावै।।
एक जीव देही द्वै राची, यह कहि कहि जु सुनावै।
उनकी पटतर तुमकौ दीजै, तुम पटतर वै पावै।।
अमृत कहा अमृत गुन प्रगटै, सो हम कहा बतावै।
'सूरदास' गूगे कौ गुर ज्यौ, बुझति कहा बुझावै।।2066।।