तैं कत तोरयौ हार नौ सरि कौ।
मोती बगरि रहे सब बन मैं, गयौ कान कौ तरिकौ।।
ये अवगुन जु करत गोकुन मैं, तिलक दिये केसरि कौ।
ढीठ गुवाल दही कौ मातौ, ओढनहार कमरि कौ।।
जाइ पुकारैं जसुमति आगैं कहति जु मोहन लरिकौ।
सूर स्याम जानी चतुराई, जिहिं अभ्यास महुअरि कौ।।1487।।