अपने कुँवर कन्हाई सौं तू माई कहति बात धौं काहे न।
बहुत बचत ब्रजराज की काननि, हँसति कहा, यह तौ सहि जाहि न।।
ऐसौ भयौ कौन कुल तेरैं, जोबन दान लयौ हम चाहि न।
अनुदिन अति उत्पात कहाँ लगि, दीजै पीपर कौ बन दाहिन।।
आन की आन कहत नित हम सौं, उनके मन कछु जानति नाहिंन।
कहा बिलोकनि बानि सिखायौ, मैं नैंकहु पहिचानतु ताहि न।।
बूझि देखि धौं कौन सयानी, हरि चोरयौ मन जाकैं पाहि न।
जाइ न मिलहु सूर के प्रभु कौं कहहु अरूझिन सौं अरुझाहिं न।।1488।।