तेरे हित कौ कहति हौ, मानै जनि मानै।
तू आई है आजु ही, उनकौ का जानै।।
नारि पराई देखि कै, हँसि लेत बुलाई।।
सो अपने सहजहिं मिलै, उनके गुन ऐसे।
भूषन लेत लगाइ कै, औरौ गुन नैसे।।
काहू कौ नहिं डरपही, मथुरापति धरकै।
मन कौ भायौ करत है, कबहूँ नहि हरकै।।
तुम सुंदरि काकी बधू, घर जाहु सवारी।
'सूर' स्याम सुनि सुनि हँसै, मनही मन भारी।।2195।।