तुम कब मो सौं पतित उधारयौ।
काहे कौं हरि बिरद बुलावत, विन मसकत को तारयौ।
गीध, ब्याध, गज, गौतम की तिय, उनकौ कौन निहोरौ।
गुनिका तरी अपनी करनी, नाम भयौ प्रभु तोरौ।
अजामील तौ बिप्र, तिहारौ, हुतौ पुरातन दास।
नैंकु चूक ते यह गति कीनी, पुनि वैकुंठ नित्र स।
पतित जानि तुम सब जन तारे, रह्यौ न कोऊ खोट।
तौ जानौ जो मोहिं तारिहौ, सूर कूर कबि ठोट।।।132।।