जेंवत स्‍याम नंद की कनियाँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



जेंवत स्‍याम नंद की कनियाँ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नँद-रनियां।
बरी, बरा, बेसन, बहु भाँतिनि, व्‍यंजन बिबिध, अगनियां।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियां।
मिस्री, दधि, माखन मिस्रित करि, मुख नावत छबि धनियाँ।
आपुन खात नंद-मुख नावत सों छबि कहत न बनियां।
जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं तिहूँ भुवनियाँ।
भोजन करि नँद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ।।238।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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