जाकै लगी होइ सु जानै।
हौ कासौ समुझाइ कहति हौ, मधुकर लोग सयाने।।
बन कुसुमावलि देखि बसत हौ, नित्य सदा रसभोगी।
भली बुरी कछु समुझत नाही, अनदेखे के जोगी।।
बूझौ जाइ जिनहिं तुम पठए, को यह पीर सँहारी।
कीजै कहा होइ जौ ऐसी, चंद चकोरहि जारी।।
तुम बड़े लोग बड़े के संगी, भाग बड़े गृह आए।
कीजै कृपा दास ‘सूरज’ कौ, जौ जदुनाथ पठाए।।3950।।