ऊधौ बात सुनौ इक नैसी।
प्रेम वान की चोट कठिन है, लागी होइ कहौ कत ऐसी।।
तुमकौ खोरि कहा कहि दीजै, आनि कहत हौ बातै जैसी।
जानै कहा बाँझ व्यावर दुख, जातक जनै न पीर है कैसी।।
हम बाबरी आनि बौरावत, कहत न तुम्है बूझियै ऐसी।
‘सूरजदास’ न्याइ कुबिजा कौ, सरबस लेइ हमारौ वैसी।।3949।।