जाकैं सदा सहाइ कन्हाई। ताहि कहौ काकौ डर भाई।।
बन घर जहाँ तहाँ सँग डोलैं। खेलत खात सबनि सौं बोलैं।।
जाकौ ध्यान न पावै जोगी। सो ब्रज मैं माखन कौ भोगी।।
जाकी माया त्रिभुवन छावै। सो जसुमति कैं प्रेम बँधावै।।
मुनि जन जाकौ ध्यान न पावैं। ब्रज-जन लै-लै नाम बुलावै।।
सूर ताहि सुर अंबर देखैं। जीवन जन्म सुगल करि लेखैं।।599।।