ब्रज-बनिता सब कहहिं परस्पर, नंद महर कौ सुत बड़ बीर।
देखौं धौं पुरुषारथ इहिंकौ, अति कोमल है, स्याम सरीर।
गयौ पताल उरग गहि आन्यौ, ल्यायौ तापर कमल लदाइ।
कमल-काज नृप-मारत हो, कोटि जलज तिहिं दिए पठाइ।
दावागिनि नभ-धरनि-बराबरि, दसहुँ दिसा तैं लीन्हौ घेरि।
नैन मुँदाइ कहा तिहिं कीन्हौ, कहूँ नहीं जो देखैं हेरि।
ये उतपात मिटत इनहीं पैं कंस कहा बपुरौ है छार।
सूर स्याम अवतार बड़ौ ब्रज, येई हैं कर्ता संसार।।600।।