जाके गुन गावत दिनरात।
ताकौ निरगुन कहत मधुप तुम, नई सुनी यह बात।।
जौ बादर जल बरषै निसि दिन, उमड़ि भरै नद खात।
स्वाति बिना नहि कल मधुकर सुनि, खग चातक के गात।।
बंसी मधुर सुनाइ हरयौ मन, दधि खायौ लै पात।
‘सूर’ स्याम नृप राज भए अब, गोपिनि देखि लजात।।3499।।