(मधुप तुम) कहौ कहाँ तै आए हौ।
जानति हौ अनुमान आपनै, तुम जदुनाथ पठाए हौ।।
वैसेइ बसन, बरन तन सुंदर, वेइ भूषन सजि ल्याए हौ।
लै सरबसु सँग स्याम सिधारे, अब कापर पहिराए हौ।।
अहो मधुप एकै मन सबकौ, सु तौ उहाँ लै छाए हौ।
अब यह कौन सयान बहुरि ब्रज, ता कारन उठि धाए हौ।।
मधुवन की मानिनी मनोहर, तही जात जहँ भाए हौ।
‘सूर’ जहाँ लौ स्याम गात है, जानि भले करि पाए हौ।।3500।।