जहाँ-जहाँ तुम हमहि उबारयौ।
ग्वाल सखा सब कहत स्याम सौ धनि जसुमति अवतारयौ।।
तृनावर्त ब्रज पर चढ़ि आयौ, लाग्यौ देन उड़ाइ।।
अति सिसुता मैं ताहि सँहारयौ, परयौ सिला पर आइ।।
फल-जनाइ बालक सँग खेलत, कैसैं आयौ साथ।।
वाहि मारि तुम हमहिं उबारयौ, ऐसे त्रिभुवन नाथ।।
कागासुर, सकटासुर मारयौ, पय पीवत दनु-नारि।।
उघा उदर तैं हमहिं बचायौ, बका-बदन धरि फारि।।
कालीदह-जल अँचै गए भरि, तब तुम लियौ जिवाइ।
सूर स्यामं सुरपति तैं राख्यौ, देतौ सबनि बहाइ।।954।।