जब तै हरि अधिकार दियौ।
तबही तै चतुरई प्रकासी, नैननि अतिहि कियौ।।
इंद्रिनि पर मन नृपति कहावत, नैननि यहै डरात।
काहे कौ मैं इनहि मिलाए, जानि बूझि पछितात।
अब सुधि करन हमारी लाग्यौ, उनकी प्रभुता देखि।
हियौ भरत कहि इनहिं टराऊँ, वै इकटक रहे पेखि।।
अब मानत है दोष आपनौ, हमही बेंच्यौ आइ।
'सूरदास' प्रभु के अधिकारी, येई भए बजाइ।।2264।।