चले सब गारुड़ी पछिताइ।
नैंकहूँ नहिं मंत्र लागत, समुझि काहु न जाइ।।
बात बूझत संग सखियनि, कहौ हमहिं बुझाइ।
कहा कहि राधा सुनायौ, तुम सबनि सौ आइ?
महा विषधर स्याम अहिबर, देखि सबहीं धाइ।
फूँक-ज्वाला हमहुँ लागी, कुँवरि उर पर खाइ।।
गिरी धरनी मुरछि तबहीं, लई तुरत उठाइ।
सूर प्रभु कौं बेगि ल्यावहु, बड़ौ गारुड़ि राइ।।745।।