नँद-सुवन गारुड़ी बुलावहु।
कह्यौ हमारौ सुनत न कोऊ, तुरत जाहु, लै आवहु।।
ऐसौ गुनी नहीं त्रिभुवन कहुँ हम जानतिं हैं नीकैं।
आइ जाइ तौ तुरत जियावहिं, नैंकु छुवत उठै जी कै।।
देखौ धौं यह बात हमारी, एकहि मंत्र जिवावै।
नंद महर कौ सुत सूरज जौ, कैसेहुँ ह्याँ लौं आवै।।746।।