चले नंद ब्रज कौ समुहाइ।
गोप सखा हरि बोधि पठाए, सबै चले अकुलाइ।।
काहूँ सुधि न रही तन की कछु, लटपटात परै पाइ।
गोकुल जात फिरत पुनि मधुबन, मन तिन उरहिं चलाइ।।
बिरह सिंधु मै परे चेत बिनु, ऐसैहि चले बहाइ।
‘सूर’ स्याम बलराम छाँड़ि कै, व्रज आए नियराइ।। 3126।।