बारबार मग जोवति माता -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भैरव


बारबार मग जोवति माता। व्याकुल बिनु मोहन बलभ्राता ।।
आवत देखि गोप नद साथा। विवि बालक बिनु भई अनाथा ।।
धाई धेनु बच्छ ज्यौ ऐसै। माखन बिना रहे धौ कैसै ।।
व्रजनारी हरषित सब धाई। महरि जहाँ तहँ आतुर आई ।।
हरषित मातु रोहिनी आई। उर भरि हलधर लेउँ कन्हाई ।।
देखे नंद गोप सब देखे। बल मोहन कौ तहाँ न पेखे ।।
आतुर मिलनकाज व्रजनारी। ‘सूर’ मधुपुरी रहे मुरारी ।। 3127 ।।

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