गोविंद प्रीति सवनि की मानत -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


            
गोबिंद प्रीति सवनि की मानत।
जिहिं जिहिं भाइ करत जन सेवा, अंतर की गति जानत।
सबरी कटुक बेर तजि, मीठे चाखि, गोद भरि ल्‍याई।
जूठनि की कछु संक न मानी, भच्‍छ किए सत-भाई।
संतत भक्त-मीत हितकारी स्‍याम बिदुर कैं आए।
प्रेम-विकल, अति आनँद उर धरि, कदली-छिकुला खाए।
कौरव-काज चले रिषि सापन, साक पत्र सु आघाए।
सूरदास करुना-निघान प्रभु, जुग जुग भक्त बढ़ाए।।13।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः