गोद लिए जसुदा नँद-नंदहिं।
पीत झँगुलिया की छबि छाजति, बिज्जुलता सोहति मनु कंदहिं।
बाजीपति अग्रज अंबा तेहि, अरक-थान-सुत माला गुंदहिं।
मानौ स्वतर्गहिं तैं सुरपति-रिपु-कन्या-सौति आइ ढरि सिंदहिं।
आरि करत कर चपल चलावत, नंद-नारि-आनन छुवै मंदहिं।
मनौ भुजंग अमी-रस-लालच, फिरि फिरि चाटत सुभग सुचंदहिं।
गूंगी बातनि यौं अनुरागति, भँवर गुंजरत कमल मों बंदहिं।
सूरदास स्बामी घनि तप किए, बड़े भाग जसुदा अरु नंदहिं।।107।।