कुबिजा नई पाई जाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली


कुबिजा नई पाई जाइ।
नवल आपुन वह नवेली, नगर रही खिलाइ।।
दास दासी भाव मिलि गयौ, प्रेम तै भए एक।
निठुर होइ सखि गए हमतै, जानि सहज अनेक।।
लैन अब अकूर आयौ, तुरत लाग्यो कान।
नई कुबिजा उन सुनाई, ‘सूर’ प्रभु मन मान।। 3145।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः