कुटिलई करी हरि मोसौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


कुटिलई करी हरि मोसौ।
चित्त चिंता भरी सुंदरि, करति मन गोसौ।।
कहि गए निसि आइहै हरि, अनत बिरमे जाइ।
रैनि बीती, उदित दिनकर, देखि तिय मुरझाइ।।
भवनही मन मारि बैठी, सहज सखि इक आइ।
देखि तन अति बिरहव्याकुल, कहति बचन सुनाइ।।
बोलि ढिग बैठारि ताका, पोछि लोचन लोर।
'सूर' प्रभु कै बिरह व्याकुल, सखि लखी मुख ओर।।2711।।

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