रहे हरि रैनि कुमुदा गेह -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


रहे हरि रैनि कुमुदा गेह।
परसपर दोउ प्रेम भीजे, बढ्यौ अतिहि सनेह।।
एक छिन इक जाम बितवति, कामरस बस गात।
ताहि बीतत जाम जुग सम, गनत तारा जात।।
उनहिं वैसै, याहि ऐसै, रजनि गई भयौ भोर।
'सूर' मोसौ करि चतुरई, गए नंदकिसोर।।2710।।

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