कियौ अति मान वृषभानुवारी। देखि प्रतिबिंब पिय हृदय नारी।।
कहा ह्याँ करत लै जाहु प्यारी। मनहिं मन देत अति ताहि गारी।।
सुनत यह बचन पिय बिरह बाढ़ी। कियौ अति नागरी मान गाढ़ौ।।
काम तनु दहत नहिं धीर धारै। कबहुँ बैठत उठत बार बारै।।
'सूर' अति भए ब्याकुल मुरारी। नैन भरि लेत, जल देत ढारी।।2421।।