काली-विष-गंजन दह आइ।
देखे मृतक बच्छ बालक सब लए कटाच्छ जिवाइ।
बहु उतपात होत गोकुल मैं, मैया रही भुलाइ।
बड़ी बेर भई अजहुँ न आए, गृह-कृत कछु न सुहाइ।
नंदादिक सब गोप-गोपि मिलि, चले बिकल बन धाइ।
देखे जाइ उरग लपटाने, प्रान तजत अकुलाइ।
अति गंभीर धीर करि जानत, संकर्षन निज भाइ।
सूरदास प्रभु नाग कियौ बस, आनँद उर न समाइ।।578।।