कही न परति हरि व्रज की बात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


कही न परति हरि व्रज की बात।
नर नारी पंछी द्रुम वेली, दरसन कौ अकुलात।।
जब तुम हे तब वनफल फलते, तहँ अब पुहुप न पात।
कीडत नाहि कपोत कुलाहल, करत नही उठि प्रात।।
गोमृग निकसि नवाइ नैन मुख, अति दुख तृन नहि खात।
गोपी ग्वाल उसास हुतासन, बिरह ज्वाल अकुलात।।
गोकुल की यह बिपति कहा कहौ, तुम बिनु हो जदुनाथ।
‘सूरदास’ स्वामी दरसन की करत सुरति दिन रात।।4121।।

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