रहित रैनि दिन हरि हरि हरि रट -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


रहित रैनि दिन हरि हरि हरि रट।
चितवति इकटक मग चकोर लौ, जब तै तुम बिछुरे नागर नट।।
भरि भरि नैन नीर ढारति है, सजल करति अति कचुकि के पट।
मनहु बिरह की बिज्जुरता लगि, लियौ नेम सिव सीस सहस घट।।
जैसै जब के अग्र ओस कन, प्रान रहत ऐसैहि अवधिहि तट।
‘सूरदास’ प्रभु मिलहु कृपा करि, जे दिन कहे तेउ आए निकट।।4122।।

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