कहिऐ जाइ कौन पै ऊधौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


मन की मन ही माँझ रही।
कहिऐ जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही।।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि सुनि, विरहिनि बिरह दही।।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तै, उत तै धार बही।
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौ, मरजादा न लही।।3970।।

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